इंडिया न्यूज सेंटर, देहरादून: 16 जून 2013... का वो दिन उत्तराखंडवासी में वो भयानक मंजर था जिसे लोग भुलाना चाहेंगे। इस तारीख ने उत्तराखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी जब आसमानी आफत की जिसने देवभूमि में हजारों लाशें बिछा दी थी। खासकर केदारघाटी में जगह-जगह बर्बादी के वो निशान छोड़े जिन्हें मिटाने में वर्षों लग जाएंगे। चार साल हो गये कहर के उस दिन को लेकिन याद करो तो रगों में आज भी सिहरन दौड़ जाती है।4 वर्षों में अपने पुराने स्वरूप में लौटने की कोशिश करती केदारघाटी अब बदल रही है। यहां जिंदगी ढर्रे पर लौट ही रही है, यात्रा भी फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौटने लगी है। कुदरत के दिए जख्मों के साथ सामन्जस्य बैठाकर लोग फिर से जिंदगी के रास्ते पर चल निकले हैं और इस सब में उनका साथ देने के लिए साये की तरह साथ खड़े हैं बाबा केदार, जो आज भी चट्टान की तरह केदारघाटी में न सिर्फ विराजमान हैं बल्कि घाटी में तबाही का मंजर देख चुके लोगों के मन में उनके प्रति श्रद्धा और अगाध हो गयी है।चार साल लगे लेकिन लोग कुदरत की उस मार को भूल कर आगे बढ़ चले हैं और बाबा केदार की नगरी भी एक बार फिर से वक्त के साथ कदम ताल करने लगी है। साल 2013 में हुई तबाही के बाद एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि शायद बाबा केदार की नगरी में दोबारा कभी रंगत लौट ही नहीं पाएगी लेकिन तबाही का मंजर दिखाने वाले बाबा ने ही लोगों को फिर से उठकर अपने पैरों पर खड़े होने की ऐसी प्रेरणा दी कि सिर्फ 3 साल में ही बाबा का धाम फिर से आबाद हो गया। यहां लोगों के मन में अपने घर और अपनों को खो देने का गम तो है लेकिन सिर उठाकर जीने का गजब का माद्दा भी है और शायद यही कारण है की 4 साल बाद केदारघाटी में आने वाले लोगों को ये विश्वास ही नहीं होता की यहां कुदरत ने विनाश की ऐसा खेल खेला था कि उसे देखने वाले कई लोग आज तक सामान्य भी नहीं हो पाये हैं। वक्त हर जख्म भर देता है और चलते रहने का नाम ही जिंदगी है और इसका जीता जगता उदाहरण बाबा केदार का धाम हैं। यहां इस बार कपाट खुलने के बाद से अब तक ३ लाख से ज्यादा लोग बाबा केदार के दर्शन कर चुके हैं और ये सिलसिला अनवरत जारी है।
Kadarghati is returning to its old form after 4 years
Source:
India News Centre