इंडिया न्यूज सेंटर, जालंधर: भारतीय ज्योतिष ग्रह-नक्षत्र के गोचर राशि स्थिति के साथ सुर्य-चंद्र की गणनाओं पर आधारित है। इन्हीं नक्षत्र, ग्रहों के समय-समय पर परिर्वतन के कारण हर वर्ष मास में कई संयोग, योग या दुर्योग निमित होते हैं। इन्हीं योगों या अवसरों का अधिक्तम लाभ उठाने और बुरे योगों से हानि का बचाव करने के लिए ज्योतिष द्वारा सटीक गणना कर मानव लाभ के लिए योजनात्मक तरीके से इन योगों का लाभ उठाया जाता है। ग्रह राशि स्थिति और चंद्र नक्षत्र भ्रमण ग्रह योगों को फलित करने का मूल पथ बनते हैं। यही योग जीवन में स्थायी उन्नति का मार्ग बनाते हैं तो कुछ योग अपने समय में घटित घटना का फल गुणाक में देते हैं अर्थात् दोगुणा, तिगुणा या पंच गुणा। इन्हीं के बारे में बता रहे हैं प्रसिद्ध वास्तु व ज्योतिष विशेषज्ञ दीपक अरोड़ा। उदाहरण नीचे प्रस्तुत किया जा रहे हैं।
1. दिपुष्कर योग: इस योग में क्रियावित या फलित घटना का दोगुणा लाभ देने में सक्षम है।
2. त्रिपुष्कर योग: इस योग में घटित घटना तीन गुणा फलित करती है अर्थात् संपति क्रय करने पर तीन संपतियों के योग निमित करती है।
3. पंचक योग: पंचक नाम पांच और इसके गुणांक अर्थात् पांच गुणा के मेल से पंचक बना है अर्थात् यह फलित घटना को पांच बार दोहराने की सामथ्र्य रखती है व रेवती नक्षत्र रविवार को होने से 28 योगों में से 3 शुभ योग बनते हैं अर्थात् पंचक पूर्णयता अशुभ नहीं है।
सो ऊपरलिखित उदाहरण ये स्पष्ट करते हैं कि कुछ विशेष नक्षत्र या ग्रह संयोग घटना फल के साथ-साथ उन्हें गुणांक में बढ़ाने का सामथ्र्य भी रखते हैं। आज हम पंचक अर्थात पांच गुणा फल देने वाले संयोग की नक्षत्र और राशि स्थिति ज्ञात करेंगे ताकि इसके लाभ हानि जानकर बुद्धि बल से इसका अधिकतम उपयोग कर सकें।
कया है पंचक योग ज्योतिषीय दृष्टिकोण : ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा अपनी गति से गोचर अनुसार कुंभ और मीन राशि में भ्रमण करता है तो इस अवधि में वो पांच नक्षत्रों से गुजरता है जोकि निम्न है।
धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद, रेवती। इन पांच नक्षत्रों के सम्मिलित स्वरूप को पंचक कहते हैं।
क्या है पंचक के प्रति भ्रांतियां या अंधविश्वास : पंचक के प्रति एक सर्वव्यापक अंधविश्वास है कि ये सर्वथा नुकसानदायक और दुर्योग है जो हर प्रकार से त्याज्य है। हिंदू धर्म में मुहूर्त का निर्धारण दो, प्रमुख ग्रंथों मुहूर्त चिन्तामणि और राज मार्तण्ड में यह वर्णित है कि इन पांच नक्षत्रों अर्थात पंचक का केवल पांच कर्मों में त्याग होना चाहिए। यह पांच कर्म नक्षत्र प्रकृति को ध्यान में रखकर मना किए गए हैं।
पंचक कितने प्रकार का है
1. रोग पंचक: इसकी शुरूआत इतवार होने से है। पंचक की अवधि में शरीरिक कष्ट और रोग झेलने पड़ते हैं अर्थात् स्वास्थ्य और शरीर का ध्यान रखना चाहिए।
2. अग्नि पंचक: यह पंचक मंगलवार को शुरू होता है। इस दिन अग्नि का भय ज्यादा रहता है। औजारों, निर्माण या धातु के संबंधित कार्य नहीं करने चाहिएं।
3. राज पंचक: राज पंचक सोमवार से शुरू मानी गई है। यह सरकारी नौकरी में शुभ मानी गई है।
4. चोर पंचक: यह पंचक शुकरवार से शुरू होती है। धन, व्यापार की हानि के योग की ज्यादा संभावना रहती है।
5. मृत्यु पंचक: शनिवार को शुरू होने वाली सबसे अधिक भयावह रहती है। यह विवाह, आयु से संबंधित दुष्परिणाम देती है।
पंचक में वर्जित पांच कर्म
1. पंचक के दौरान धनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी और ईंधन से संबंधित ज्वलनशील पदार्थ संग्रह नहीं करने चाहिए।
2. शतभिषा नक्षत्र कलह से ज्यादा मशहूर है इसलिए इस दौरान कोर्ट कचहरी झगड़े फसाद से बचना चाहिए।
3. पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में रोग संंबंधित हानि की संभावना अधिक रहती है इसलिए ज्यादा गंभीर सर्जरी, चिकित्सा के समय इस नक्षत्र का त्याग ही उचित रहता है।
4. उत्तर भाद्रपद नक्षत्र धन और संपत्ति हानि के योग बनाता है इसलिए सरकारी कर और दंड प्रक्रिया या कचहरी तिथि में इसका त्याग
करना चाहिए।
5. रेवती नक्षत्र में मानसिक तनाव, धन हानि के संयोग के संकेत करता है इसलिए इसे त्याग के निर्देश देते हैं।
इन नक्षत्रों के संकेतों से पांच कर्म पूर्णतया मना किए गए हैं जोकि निम्न हैं।
1. लकड़ी, ईंधन एकत्र करना।
2. यात्रा खासकर दक्षिण दिशा की यात्रा
3. घर की छत बनवाना।
3. चारपाई बनवाना।
5. शव दाह
पंचक में वर्जित क्रम का निराकरण:
1. धनिष्ठा नक्षत्र के दौरान लकड़ी संबंधित क्रय की मनाही है। यदि इस क्रय की गई लकड़ी का अंश भाग किसी शुभ कार्य अर्थात गायत्री मात्रा का हवन करके की जा सकती है या अग्नि के अधिष्ठात्री देव मंगल हैं। मंगल के ईष्ट श्री हनुमान हैं इसलिए हवन यज्ञ और श्री हनुमान स्मरण से इस कष्ट से मुक्ति पाई जा सकती है।
2.दूसरा निषेध कार्य दक्षिण दिशा की यात्रा मानी गई है। दक्षिण मृत्युलोक की दिशा और दिशा स्वामी यम है इसलिए दक्षिण दिशा यात्रा की मनाही की गई। इस दोष के निराकरण के लिए शुभ होरा का चयन अपने ईष्ट को प्रार्थना कर भगवान महावीर को फल मिठाई का भोग लगाकर यात्रा संकट को हरने का निवेदन कर यात्रा करनी चाहिए यदि अति आवश्यक हो।
3. चारपाई न बनवाने के पीछे भी लकड़ी तत्व की चीजों की मनाही का ही आधार है। अगर चारपाई क्रय हो गई हो तो उसका उपयोग
पंचक के बाद ही करना चाहिए और उपयोग से पूर्व कुत्तों को चारपाई से उतारा करके मीठी रोटी खिला देनी चाहिए।
4. चौथा घर की छत न डलवाना कहा गया है। अगर अज्ञानतावश लैंटर शुरू कर दिया हो तो इसके लिए लैंटर डालने वाली लेबर को प्रभु स्मरण या पूजा के बाद पीला मिष्ठान क्षमा याचना के साथ बांटना चाहिए।
5. शव दाह भी अग्नि कर्म माना गया है इसलिए इस दोष से निवृत्ति के लिए दाह संस्कार के समय पांच पुतले बनाकर अंतिम दाह संस्कार करना चाहिए।
इस वर्ष की बाकी पंचक तिथियां व समय:
12 अक्तूबर 7:52 से 16 अक्तूबर 11:14 तक
आठ नवंबर 16:33 से 12 नवंबर 22:30
पांच दिसंबर 23:03 से दस दिसंबर 8:29 तक अशुभ
पंचक नक्षत्र के अशुद्ध होने की पौराणिक कथा: पंचक के बारे में एक पौराणिक कथा सुनने में आती है कि एक बार मंगल ग्रह ने रेवती नक्षत्र के साथ-साथ दुष्कर्म किया था जिसके कारण रेवती अशुद्ध हो गई। इसी अशुद्ध अवस्था में उसके परिजनों ने खेती से जल ग्रहण किया जिन परिजनों ने जल ग्रहण किया। उन्हें देवगुरु बृहस्पति ने अशुद्धता के कारण बहिष्कृत कर दिया। इसमें धनिष्ठा नक्षत्र पिता, बड़ी बहन, पूर्व भद्रपद छोटी बहन, उत्तरा भाद्रपद, माता शतभिषा नक्षत्र, पत्नी रेवती नक्षत्र थी। इस परिवार में श्रवण नक्षत्र पुत्र था जिसने देवगुरु से फरियाद की मेरा पिता आज्ञा मानने से जल लाने में कोई दोष नहीं है इसलिए मुझे दोष से मुक्ति दी जाए तो परिणामस्वरूप श्रवण नक्षत्र दोष से मुक्त हो गया।
क्या पंचक पूर्णतया अशुद्ध है या नहीं: पंचक में शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस दौरान सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जा सकते हैं। अति आश्यक कार्यों में धनिष्ठा नक्षत्र का अंत शतभिषा का मध्य, भाद्रपद का प्रारंभ और उत्तरभाद्रपद के अंत की पांच कडिय़ां प्रयोग की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त पूर्व भाद्रपद, उत्तरा व रेवती नक्षत्र रविवार को होने से 28 योगों में से 3 अशुभ योग बनते हैं अर्थात पंचक पूर्णतया अशुभ नहीं है।