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वैज्ञानिकों की चिंता: टीका आने के बाद भी जीवन पहले जैसा होना मुश्किल

Scientists worry: life becomes difficult even after corona vaccination share via Whatsapp

Scientists worry: life becomes difficult even after corona vaccination

वर्ल्ड डेस्क:
कोरोना वायरस को लेकर एक नया शोध कहता है कि कोरोना वैक्सीन देश की 50 फीसदी जनसंख्या को देने की आवश्यकता है, अगर वैक्सीन देने की क्षमता 100 फीसदी क्यों ना हो। ऐसा करने से संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सकता है और महामारी के उच्च स्तर को टाला जा सकता है।

इस शोध के कई सारे लेखक हैं, इसे अमेरिका के वैज्ञानिकों की ओर से तैयार किया गया था और अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रीवेंटिव मेडिसिन में छापा गया था। इस शोध में कहा गया है कि डिसीज प्रीवेंशन पॉलिसी को तैयार करने के लिए किसी वैक्सीन की कवरेज और उसकी क्षमता दो महत्वपूर्ण घटक हैं।
वैक्सीन कवरेज का मतलब होता है कि जनसंख्या में कितने प्रतिशत लोगों को वैक्सीन दी गई है और वैक्सीन क्षमता का अर्थ है कि अनवैक्सीनेटेड ग्रुप की तुलना में वैक्सीनेटेड समूह में वैक्सीन के प्रभाव से बीमारी में कितनी प्रतिशत तक कमी आ रही है।

कई देशों में कोरोना वैक्सीन को लेकर तेजी से काम चल रहा है, ताकि पहली की तरह दुनिया का चलाया जा सके। न्ययॉर्क के सिटी यूनिवर्सिटी के मुख्य इंवेस्टिगेटर ब्रुस वाई ली का कहना है कि अगर वैक्सीन बन भी जाती है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप वापस अपना पुराना जीवन जी सकते हैं, जैसे वो महामारी के पहले थी। ली ने कहा कि वैक्सीन एक दूसरे उत्पाद की तरह ही है, जिसे इस्तेमाल करने के बाद यह देखना होगा कि क्या उससे बीमारी को कम करने मेंं मदद मिल रही है या नहीं। शोध का मानना है कि वैक्सीन की क्षमता कम से कम 70 फीसदी होनी चाहिए और दूसरे उपायों के बिना बीमारी को रोकने के लिए कम से कम 80 फीसदी क्षमता होनी चाहिए।

शोध में कहा गया है कि वैक्सीन की क्षमता की सीमा 70 फीसदी तक बढ़ सकती है, जब वैक्सीन कवरेज 75 फीसदी गिरेगी और वैक्सीन क्षमता 80 फीसदी बढ़ेगी जब कवरेज 60 फीसदी तक गिरेगी। जब भी वैक्सीन की कवरेज 50 फीसदी तक गिरेगी तो इससे महामारी के उच्च स्तर को खत्म करना संभव नहीं होगा। 25 अगस्त तक दुनिया में 173 कोविड-19 के मामले थे जो अलग-अलग क्लीनिकल परीक्षण पर थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवि़ड-19 कैंडिडेट वैक्सीन के ड्राफ्ट लैंडस्केप के अनुसार ये आंकड़ा दिया गया है। भारत में एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड मिलकर वैक्सीन तैयार कर रहे हैं जिसे पुणे के सीरम इंस्टिट्यूट में उत्पादित किया जाएगा।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के ब्रांडन यान का कहना है कि वैक्सीनेशन दर को बढ़ाने के लिए चाहे वो लंबी अवधि के लिए हो या छोटी अवधि के लिए, हस्तक्षेप की आवश्यकता जरूर पड़ेगी। उन्होंने आगे कहा कि हमें एक पब्लिक हेल्थ कैंपेन की जरुरत है, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी, स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले और स्थानीय समुदाय शामिल हो। इसके अलावा उन्होंने कहा कि मरीजों की चिंताओं को दूर करने और वैक्सीन कहां और कैसे देनी है, ऐसी जानकारी के लिए एक सक्रिय प्राथमिक देखभाल रणनीति की आवश्यकता होगी।

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Source: INDIA NEWS CENTRE

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