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ईश्वर भक्ति से समस्याओं का समाधान मिलता है

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ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव
नई दिल्लीः
ईश्वर की आराधना से सभी प्रकार के कष्ट एवं पापों से मुक्ति मिलती है। ईश्वर की प्रेम भक्ति से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है किंतु ईश्वर की भक्ति से पूर्व मन को सात्विक तथा निष्काम बनाना आवश्यक है। ईश्वर का निरंतर स्मरण करने से व्यक्ति परमधाम को प्राप्त होता है अन्यथा उसे चौरासी लाख यौनियों में ही भटकना पड़ता है।

ईश्वर भक्ति
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि चार प्रकार के मनुष्य प्रभु की शरण में जाते हैं :
1. वे जो दुःखी हैं, अपने दुःखों से मुक्ति पाने के लिए।
2. वे जिन्हें जिज्ञासा है, ईश्वर को जानने की।
3. वे जिन्हें धन की आवश्यकता है, सांसारिक कार्यों के लिए।
4. वे जिन्हें परम् सत्य का ज्ञान है।


किसी कार्य की पूर्ति के लिए प्रभु की पूजा सकाम भक्ति कहलाती है। शुद्ध भक्ति निष्काम होती है और उसमें किसी लाभ की आकांक्षा नहीं रहती। जो परमज्ञानी है और शुद्ध भक्ति में लगा रहता है वह सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूं और वह मुझे अत्यंत प्रिय है। जिसकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा प्रभावित है, वे देवताओं की शरण लेते हैं और अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा के विशेष विधि विधानों का पालन करते हैं। देवता विशेष की पूजा द्वारा अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं। किन्तु वास्तविकता तो यह है कि ये सारे लाभ केवल मेरे द्वारा प्रदत्त हैं। देवताओं की पूजा करने वाले देवलोक को जाते हैं, किन्तु मेरे भक्त अन्ततः मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं। भगवान की कथा और चरित्रों को सुनकर जो कभी द्रवित न हुआ हो, उसको पत्थर के समान कठोर समझना चाहिए। जो मनुष्य भगवान की लीलाओं को सुनते-सुनते रोने लग जाते हैं, उनके जन्म-जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। प्रभु की लीलाओं के सुनने व याद करने से बढ़कर अन्य कोई उपाय मनुष्य के उद्धार के लिए नहीं है। प्रभु की भक्ति से ही आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है। भक्तिपूर्वक भगवान की शरण ग्रहण करने से ही भगवान की विभूति, रूप, नाम तथा गुणों को समझा जा सकता है। भक्ति पूर्वक भगवान कृष्ण का आजीवन स्मरण करने से विशेषतया मृत्यु के समय ऐसा करने से मनुष्य भगवान के परमधाम को प्राप्त करता है नहीं तो चौरासी लाख योनियों में ही भटकता रहता है। शास्त्र सम्मत विधि से सतोगुण में रह कर किये गए कर्म हृदय को शुद्ध करते हैं और उच्चतम लोकों में जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। रजोगुण में रहकर किए गए कर्मों से इसी लोक में भटकते रहते हैं। तमो गुणी व्यक्ति नीच योनियों को प्राप्त होते हैं। सतोगुणी व्यक्ति ही कृष्ण भक्ति कर पाते हैं और कृष्ण के नित्य धाम को वापिस जा पाते हैं। इस संदर्भ में भगवद्गीता के दसवें अध्याय के श्लोक नं. 8, 9, 10, 11 का उल्लेख विशेष रूप से करना चाहूंगा, जिसमें पूरी गीता का सार आ जाता है :
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते। इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः।। 1 ।।
मच्चिता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्। कथयन्तच्श्र मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च।। 2 ।।
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।। 3 ।।
तेषा मेवनुकम्पार्थ महमज्ञानजं तमः। नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञान दीपेन भास्वता।। 4 ।।

इन श्लोकों का अर्थ है :
मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का कारण हूं, प्रत्येक वस्तु मुझसे उद्भूत है। जो बुद्धिमान यह भली-भांति जानते हैं, वे मेरी प्रेमभक्ति में लगते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं।मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते हुए तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम सन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं। जो प्रेम पूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूं, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं। मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूं। भगवान के इन वचनों को प्रमाण मानते हुए हमें भगवान की प्रेमभक्ति में लगना चाहिए जिससे हम आध्यात्मिक उन्नति कर सकें। आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए हमें अपना स्वभाव सतोगुणी बनाना पड़ेगा और सतोगुणी स्वभाव विकसित करने के लिए हमें कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। सबसे पहले हमें सभी प्रकार के नशीले पदार्थों का त्याग करना चाहिए जैसे : सिगरेट, शराब, भांग, गांजा इत्यादि। दूसरे हमें शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए। तीसरे पराई स्त्री/पुरूष से सम्पर्क नहीं बनाएं। चौथे किसी भी प्रकार का जुआ, सट्टा आदि नहीं खेलना चाहिए। इस प्रकार से जीती हुई राशि गलत कार्यों में ही खर्च होगी। इसके अलावा प्रतिदिन कुछ समय भगवद् स्मरण में लगाना चाहिए। भगवद् स्मरण करने के लिए आप प्रतिदिन गीता या भागवत् के कुछ अंश पढ़ सकते हैं। दूसरे से भगवद् ज्ञान की चर्चा कर सकते हैं। श्री विग्रह की पूजा कर सकते हैं। भगवान को प्रेम सहित फल, फूल और जल अर्पित कर सकते हैं अपने परम् कल्याण के लिए महामंत्र का जप कर सकते हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
इन विधि विधानों का पालन करते हुए आप स्वयं ही महसूस करेंगे कि आप आध्यात्मिक उन्नति कर रहे हैं और ग्रह जनित कष्टों से छुटकारा पाते जा रहे हैं। अपने कष्टों से छुटकारा पाने के लिए भगवान से प्रार्थना और भगवान की भक्ति से अच्छा कोई उपाय नहीं है। अधिक कुछ न कहते हुए भगवान से आपकी आध्यात्मिक उन्नति की कामना करता हूं।

ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव 
“श्री मां चिंतपूर्णी ज्योतिष संस्थान
5, महारानी बाग, नई दिल्ली -110014
8178677715, 9811598848

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Source: INDIA NEWS CENTRE

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