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वास्तु की उपयोगिता और उपायों का महत्व

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Importance of Vaastu utility and remedies


इंडिया न्यूज सेंटरः
अथर्ववेद एक वेद है और स्थापत्य उपवेद है। यह उपवेद ही हमारे वास्तु शास्त्र का आधार है। परमपिता परमात्मा की असीम कृपा से ब्रह्मा जी को जब सृष्टि की रचना का कार्य सौंपा गया, तो ब्रह्मा जी ने अपने चारों मुखों से चार वेदों का जन्म हुआ तथा वास्तु विद्या, धनुर्विद्या, चिकित्सा यानि आयुर्विद्या तथा संगीतविद्या की रचना की। वेदों में ज्योतिष से संबंधित कुल 242 श्लोक हैं। ऋग्वेद में 37, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। ये श्लोक ही ज्योतिष का आधार हैं। स्थापत्य वेद भी अथर्ववेद का ही एक भाग है। बिना ज्योतिष के वास्तु विद्या अधूरी है। वास्तु और ज्योतिष का चोली दामन का साथ है। वास्तु में मुहूर्त का भी बहुत महत्व है और बिना ज्योतिष के ज्ञान के आप मुहूर्त नहीं निकाल सकते। वास्तु शास्त्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार है। यदि आप वेदों पर और भगवान पर विश्वास करते हैं तो कोई कारण नहीं कि वास्तु पर विश्वास न करें। जिस प्रकार हमारा शरीर पंचमहाभूतों से मिलकर बना है, उसी प्रकार किसी भी भवन के निर्माण में पंच महाभूतों का पर्याप्त ध्यान रखा जाए तो भवन में रहने वाले सुख से रहेंगे। ये पंचमहाभूत हैं: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। हमारा ब्रह्माण्ड भी इन्हीं पंच तत्वों से बना है। इसीलिए कहा जाता है ‘‘यथा पिन्डे तथा ब्रह्माण्डे’’। भगवान ने हमें ये पाँच वस्तुएँ दी हैं भ से भूमि, ग से गगन अर्थात आकाश, व से वायु,  अ (अ) से अग्नि और न से नीर अर्थात जल। इसी प्रकार वास्तु शब्द भी पंच  तत्वों का बोध कराता है। व से वायु, अ से अग्नि, स से सृष्टि (भूमि), त से तत अर्थात आकाश और उ से जल। जब पंच महाभूतों से शरीर बन जाता है तो मन, बुद्धि और अहंकार के सहित आत्मा का उसमें प्रवेश होता है। पंच महाभूतों के लिए पाँच ग्रहों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। पृथ्वी के लिए मंगल, जल के लिए शुक्र, अग्नि के लिए सूर्य, वायु के लिए शनि और आकाश के लिए बृहस्पति को माना गया है। मन के लिए चन्द्रमा, बुद्धि के लिए बुध और अहंकार के लिए राहु को माना गया है। केतु मोक्ष का कारक है। जिस प्रकार शरीर में इन तत्वों की कमी या अधिकता होने से व्यक्ति रोगी हो जाता है, उसी प्रकार भवन में इन तत्वों की कमी, अधिकता या सही सम्मिश्रण के अभाव में उस भवन में रहने वालों को कष्ट होता है।
अक्सर यह प्रश्न उठता है कि वास्तु शास्त्र का प्रचलन पिछले कुछ वर्षों से ही क्यों बढ़ा है?
क्या उपायों से वास्तु दोषों को कम किया जा सकता है?
इस विषय में मेरा मत है कि जब से व्यक्तियों ने बहु-मंजिला फ्लैटों में रहना शुरू किया है, तबसे उसके कष्ट बढ़े हैं, क्योंकि फ्लैट एक डिब्बानुमा घर की तरह बनते हैं जहां ब्रह्म स्थान खुला नहीं रखा जाता। सूर्य की गर्मी और वायु को घर में आने नहीं दिया जाता। कुछ लोग सुरक्षा के लिए दरवाजे और खिड़कियाँ बंद रखते हैं तो कुछ इसलिए कि कमरे और सामान गंदे न हो जाएं। पुराने मकानों में मकान के बीचों बीच खुला आंगन रखा जाता था। जिससे चारों तरफ के कमरो में धूप, हवा और आकाश तत्व पहुँच सकें। जिस प्रकार व्यक्ति रोगी होने पर चिकित्सक के पास जाता है, उसी प्रकार भवन में वास्तु दोष होने पर वास्तु सलाहकार के पास जाने में कोई बुराई नहीं है। जिस प्रकार एक अच्छा चिकित्सक असाध्य रोग होने पर ही शल्य चिकित्सा की राय देता है, उसी प्रकार वास्तु में असाध्य दोष होने पर ही तोड़ फोड़ कर उसे सुधारने की सलाह दी जाती है। बिना तोड़ फोड़ किए केवल कुछ वस्तुओं को इधर-उधर करके, खाने और सोने की सही दिशा का चुनाव करके तथा पूजा पाठ द्वारा भी वास्तु दोषों का निवारण किया जा सकता है। किसी भी समाधान के लिए आप ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव से संर्पक साध सकते है। मोबाईल नंबर-8178677715

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Source: INDIA NEWS CENTRE

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