Opposition's proposal for removal of Chief Justice dismisses in Rajya Sabha
नेशनल न्यूज डेस्कः उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर महाभियोग के सात विपक्षी दलों के नोटिस को सोमवार को खारिज कर दिया है। संविधान विशेषज्ञों और जानकारों के साथ विस्तार से विचार-विमर्श करने के बाद उन्होंने ये फैसला लिया है. कांग्रेस के नेतृत्व में सात विपक्षी दलों ने प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया था। उपराष्ट्रपति ने अपने 10 पेज के आदेश में विपक्ष के तमाम आरोपों को निराधार बताते हुए प्रस्ताव को खारिज करने के 22 कारण बताए हैं. वेंकैया नायडू की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि विपक्ष का महाभियोग का प्रस्ताव सही नहीं है इसलिए वह चीफ जस्टिस को हटाए जाने के प्रस्ताव की इजाजत नहीं दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक आरोप और इसके प्रत्येक आधार के सभी पहलुओं की विवेचना के लिए कानूनविदों और विशेषज्ञों से विस्तार से विचार-विमर्श के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि यह प्रस्ताव स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है. इसलिए मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से इंकार करता हूं. प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों के गंभीरता और सावधानीपूर्वक विश्लेषण के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि ''हम व्यवस्था के किसी भी स्तंभ को विचार, शब्द या कार्यकलापों द्वारा कमजोर करने की अनुमति नहीं दे सकते। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को 'पद से हटाने' के लिए दिए गए नोटिस को खारिज करने से पहले सभापति ने तमाम क़ानूनविदों से विस्तृत विचार-विमर्श भी किया. सभापति नायडू ने नोटिस को नामंज़ूर करने के अपने फैसले की जानकारी राज्य सभा के महासचिव देश दीपक वर्मा को दी और उन्हें नोटिस देने वाले सदस्यों को उसे नामंज़ूर किए जाने की जानकरी से अवगत कराने को कहा। सभापति ने प्रस्ताव को खारिज करने के जो कारण गिनाए हैं उन पर गौर करें तो, न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाए गए आरोप पुख्ता नहीं हैं। खुद नोटिस देने वाले भी इस बारे में निश्चित नहीं थे। प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोपों में दुर्व्यवहार या अक्षमता को लेकर कोई भी विश्वसनीय और सत्यापन योग्य चीजें नहीं बताई गई हैं। किसी के महज विचारों के आधार पर हम संविधान के किसी स्तंभ को कमजोर नहीं होने दे सकते। जो सवाल उठाए गए वो बुनियादी तौर पर न्यायपालिका की आंतरिक प्रक्रियाओं से जुड़े हैं। ऐसे में इन पर आगे जांच की जरूरत नहीं है. जो सांसद यह प्रस्ताव लेकर आए, उन्होंने प्रेस में बताकर संसदीय रिवाज और परंपरा का अनादर किया है।सभापति ने अपने जवाब में विपक्ष की ओर से लगाए गए पांचों आरोपों पर सिलसिलेवार जवाब दिए हैं। विपक्ष की ओर से पेश किए गए वित्तीय अनियमितता के आरोप के पर सभापति ने कहा कि ये महज शक और अनुमान पर आधारित है. जबकि संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीश को पद से हटाने लिए कदाचार को साबित करने वाले आधार पेश करना अनिवार्य शर्त है. प्रधान न्यायाधीश द्वारा अपने प्रशासनिक अधिकारों का दुरुपयोग करने के आरोप पर सभापति ने कहा है कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपने फैसले में निर्धारित कर दिया है कि प्रधान न्यायाधीश ही मुकदमों के आवंटन संबंधी 'रोस्टर का प्रमुख' है. ऐसे में अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप भी स्वीकार्य नहीं है। कानून के जानकारों ने भी सभापति के फैसले को सही बताते हुए विपक्ष के प्रस्ताव को गलत बताया है। सभापति नायडू ने प्रस्ताव को खारिज करने के साथ ही विपक्ष को इस तरह के आरोप लगाने से बचने की नसीहत देते हुए कहा कि इस तरह का फैसला लेने से पहले विपक्ष को इस पर बारीकी से सोचना चाहिए था क्योंकि इस तरह के प्रस्ताव से आम लोगों का न्यायपालिका में भरोसा घटता है. उन्होंने कहा ''लोकतांत्रिक व्यवस्था के संरक्षक होने के नाते इसे वर्तमान और भविष्य में मजबूत बनाना तथा संविधान निर्माताओं द्वारा सौंपी गई इसकी समृद्ध एवं भव्य इमारत की नींव को कमजोर नहीं होने देना हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी है। गौरतलब है कि कि कांग्रेस सहित सात दलों ने न्यायमूर्ति मिश्रा को पद से हटाने के लिए शुक्रवार को उपराष्ट्रपति नायडू को नोटिस दिया था। लेकिन सभापति ने जिस तरह से विपक्ष को तथ्यों के आधार पर आइना दिखाया है उससे साबित होता है ये केवल एक सियासी दांव भर था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को खारिज किए जाने के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला और कहा कि कांग्रेस न्यायिक प्रक्रिया को नुकसान कर रही है और राजनीतिक फायदे के लिए सुप्रीम कोर्ट को खत्म करने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने कहा है कि अब जनता कांग्रेस के खिलाफ महाभियोग लाएगी वहीं कांग्रेस ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की बात कही है। हालांकि संविधान विशेषज्ञ इसे राजनीति से प्रेरित कदम बता रहे हैं. जानकारों का कहना है कि सभापति ने पूरी प्रक्रिया का पालन किया है. दरअसल मुख्य न्यायाधीश या किसी न्यायाधीश को पद से हटाने का प्रस्ताव सदन में आने पर उस सदन के अध्यक्ष या सभापति इस पर फैसला लेते हैं. वो चाहें तो इसे स्वीकार कर लें या इसे खारिज भी कर सकते हैं. अगर प्रस्ताव स्वीकार होता है तो फिर तीन सदस्यों की एक कमेटी आरोपों की जांच करती है। देश में इससे पहले ऐसे मामलों की बात करें तो अब तक चार बार ऐसे मामले हुए हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी, कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन, सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस पीडी दिनाकरन और गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पार्दीवाला शामिल हैं। भारत में आज तक किसी जज को ऐसा प्रस्ताव लाकर हटाया नहीं गया है। फिलहाल तो सभापति ने प्रस्ताव खारिज कर दिया है लेकिन मामला थमता नहीं दिख रहा है।